by Ganesh_Kandpal
April 27, 2025, 6:06 p.m.
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नैनीताल लिटरेचर फेस्टिवल: तीसरे दिन साहित्य, मिथकों और संगीत का अनूठा संगम
साहित्यिक संवादों से लेकर सुरमयी शाम तक, दर्शकों ने लिया अद्भुत अनुभव
नैनीताल। नैनीताल लिटरेचर फेस्टिवल 2025 के तीसरे दिन का आरंभ साहित्य और संस्कृति के विविध रंगों से हुआ। कार्यक्रम का संचालन शीतल बिष्ट ने किया। फेस्टिवल के संस्थापक और लेखनी फाउंडेशन के अध्यक्ष अमिताभ सिंह बघेल ने अतिथियों, लेखकों और विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए साहित्य, कला और प्रकृति के इस संगम की महत्ता पर प्रकाश डाला।
दिन की शुरुआत मोहित सनवाल द्वारा प्रस्तुत नाट्यपाठ “कालिदास और मल्लिका” से हुई, जिसमें आषाढ़ का एक दिन और गिरीश कर्नाड के तुगलक नाटक के भावपूर्ण अंश प्रस्तुत किए गए। इसके बाद “नेचर’स नैरेटिव्स” सत्र में लेखिका अनील बिष्ट और लेखक हरविजय सिंह बोरा ने प्रकृति संरक्षण के प्रति अपने अनुभव साझा किए। अनील बिष्ट ने उत्तराखंड के वृक्षों पर अपनी आगामी पुस्तक की घोषणा भी की।
“मिथिक रियल्म्स” सत्र में लेखक आनंद नीलकंठन और शास्त्रीय नृत्यांगना राजेश्वरी साईंनाथ ने पौराणिक कथाओं की विविधता पर चर्चा की। राजेश्वरी ने शूर्पणखा प्रसंग पर आधारित दो भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत किए।
“द आर्ट ऑफ सस्पेंस” सत्र में लेखिका ऋचा एस. मुखर्जी ने थ्रिलर लेखन की चुनौतियों पर चर्चा की, वहीं “ऑल ही लेफ्ट मी वाज ए रेसिपी” में शेनाज़ ट्रेज़री ने प्रेम और आत्म-खोज की यात्रा साझा की। “बेगम पारा” सत्र में लेखिका प्रत्यक्षा ने अपने लेखन में दर्द, विस्थापन और आत्म-खोज जैसे विषयों पर विचार रखे।
“फ्रॉम द किंग्स टेबल” में खाद्य इतिहासकार पुष्पेश पंत, नवाब काज़िम अली खान और सईद शेरवानी ने भारत की शाही रसोई की विरासत पर रोचक संवाद किया। “सर्कल्स ऑफ फ्रीडम” सत्र में वरिष्ठ राजनयिक टीसीए राघवन ने समकालीन भारत में आज़ादी और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं पर पत्रकार ज्योत्सना मोहन से संवाद किया।
“इंसैशिएबल शोभा” सत्र में प्रसिद्ध लेखिका शोभा डे ने जीवन, लेखन और समाज पर अपने स्पष्ट विचार साझा किए। वहीं “फ्रॉम स्लमडॉग टू सेवन लाइव्स” में विकास स्वरूप ने अपने रचनात्मक सफर और अंतरराष्ट्रीय सफलता की कहानी सुनाई।
दिन के अंत में फेस्टिवल निदेशक द्वारा स्वयंसेवकों और इंटर्न्स को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।
तीसरे दिन का समापन “ख़याल का सफ़र” नामक भव्य संगीत संध्या से हुआ, जिसमें उस्ताद ग़ुलाम सिराज नियाज़ी, मेहदी हसन नियाज़ी, उस्ताद ग़ुलाम सुल्तान नियाज़ी, उस्ताद शहज़ाद हुसैन ख़ान और मुनीर ख़ान नियाज़ी ने सुरों की अविस्मरणीय छटा बिखेरी। हिमालयी वादियों में गूंजती स्वरलहरियों ने समापन को दिव्य और आत्मीय बना दिया
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